"किसी ने बड़े कमल की बात कही है की हमारी उपलब्धियों में भी दूसरों का भी हाथ होता है समुन्दर में पानी भले ही अपार हो लकिन सच तो ये है की वो भी नदियों का उधार होता है "
Hi guys मेरा नाम है आर्यन और में आपके लिए लेकर आया हु एक छोटी सी कहानी। ये कहानी है एक राजा की जो एक बार अपने सैनिको के साथ शिकार पर गया था शिकार करते - करते कब वो सैनिकों से अलग हो गया उसे पता नहीं चला। अब उसे जंगल से बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिल रहा था। ऊपर से प्यास लगी थी गर्मी का दिन था। दोपरहर का वक्त था। राजा परेशान था। ऊपर वाले को बार बार याद कर रहा था की मेरी मदत कर दो - मेरी मदत कर दो। तभी उसने वह एक लकड़हारे को देखा जो लकड़ी काट रहा था। राजा लकड़ हारे के पास गया और सबसे पहले कहा की भैया पानी पिला दो।
वो लकड़हारा था उसने राजा को पानी पिलाया और कहा राजा साहब आप। मैने आपको पहचान लिया। राजा ने कहा क्या बात है बस मुझे पानी पिलाने के लिए सबसे पहले आपका धन्यवाद। अब ये बता दो रास्ता कहा मिलेगा वापस राजमहल जाना है। लकड़हारे ने वो जंगल के रास्ते राजा को बता दिए । राजा बहुत खुस था उसने कहा सुनो जब भी तुम्हारे पास वक्त हो राजमहल आना। अभी तो तुम्हे देने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है तुम्हारा उधार मुझ पर बकाया रहेगा। वो उपहार तुम्हे महल मे मिल जायेगा। लकड़हारा बड़ा खश हुआ। सोचा क्या बात है राजा साहब मुझे उफहार देंगे। शाम को घर गया पत्नी से बोल की जब भी हमारे पास वक्त होगा हम राजमहल जायेंगे। राजा साहब मुझे उपहार देने वाले है पत्नी ने कहा क्या वक्त होगा तुम कल ही राजा के पास चले जाओ।
फिर सुबह होते ही लकड़हारा महल पहुंच गया। सैनिको से कहा की मै लकड़हारा हुं । मुझे राजा साहब ने कहा था मिलने के लिए। सैनिक हसने लगे की क्या तुम पागल हो राजा तुम से क्यों मिलेंगे। उसने कहा नहीं एक बार राजा से जाकर बात करो। सैनिक राजा के पास गए और कहा की एक लकड़हारा आपसे मिलने आया है। राजा पहचान गया उसने कहा उसको अंदर बुला लो लकड़हारा अंदर पंहुचा। उसके हाल को देखकर राजा को समझ में आ गया की बहुत गरीबी में जी रहा है। राजा सोचने लगा की क्या उपहार दू। फिर राजा को याद आया की उसके पास एक बगीचा था। लकड़हारा है लकड़ी की समझ होगी यही सोचकर राजा ने उसको एक बड़ा सा बगीचा दे दिया।
लकड़हारा बड़ा खुश हुआ। पत्नी को बताया की राजा ने उसके नाम एक बड़ा सा बगीचा कर दिया है। लकड़हारा था क्या करता लकड़ियां काटने लगा। कोयला बनाने लगा। कोयला बेचने लगा। कुछ दिन बाद राजा ने सोचा की चलकर देखते है कि बगीचे का क्या हाल है। राजा वह पंहुचा तो उसने देखा की पूरा बगीचा वीरान पड़ा था। कोयले के ढेर लगे थे। लगभग सारा बगीचा ही कोयला बन गया था। राजा लकड़हारे से मिला तो लकड़हारे ने दन्यवाद किया की महाराज आपकी वजह से हमारी जिंदगी ठीक-ठाक हो गई है । पहले हम बहुत गरीब थे अब तो थोड़ा बहुत पैसा मिल जाता है।
राजा ने कहा ये तुमने क्या कर दिया? एक काम करो एक छोटा सा लकड़ी का टुकड़ा लो, उसे बाजार में बेच कर आओ वो बेचने के लिए बजार में गया। और वो छोटा सा लकड़ी का टुकड़ा कोयले से कई गुना दाम में बिका। लकड़हारा वापस आकर राजा से कहा की महाराज ये लकड़ी का टुकड़ा तो बहुत महंगा बिका। तो राजा ने कहा की ये जो तुम जिस लकड़ी का कोयला बना रहे थे वो चन्दन का था। अब जाकर लकड़हारे को समझ आया की राजा ने इतनी महंगी लकड़ी वाले बगीचे को उसके नाम किया था। वो जाकर के राजा के चरणों में गिर गया माफी मांगने लगा की आपने मुझे हीरा दिया था मै उसे कोयला समझ बैठा।
ये छोटी सी कहानी लकड़हारे, राजा या चन्दन की लकड़ी की नहीं है हम सबकी है। हम सबको भी चन्दन का बगीचा मिला है और हम जिंदगी काट काट कर उसे कोयला बना रहे है इसका ध्यान रखिये अपनी जिंदगी का मकसद धूड़िये और इस पूरी जिंदगी के कोयले बनने से पहले अपने मकसद तक पहुँचिये। क्यूंकि इस बगीचे के मालिक आप खुद है । तो इसी उमड़ते हुए होसले के साथ कर दिखाओ ऐसा की दुनिया करना चाहे आपके जैसा।
कैसी लगी कहानी हमें कमेंट में जरूर बताऐं।
Bhut sahndar bhai😍
ReplyDeleteBahut khub Bhai
ReplyDeleteKahin bahut achha hai