"किसी ने बड़े कमाल की बात कही है की सिंह बनो सिंहासन की चिंता मत करो। क्यूंकि सिंह जिस चट्टान पर बैठ जाता है वही सिंहासन बन जाता है "
Hi guys मेरा नाम है आर्यन और मै आपके लिए लेकर आया हूँ एक छोटी सी कहानी। ये कहानी है एक मूर्तिकार की जिसके बारे में कहा जाता था की ये ऐसी मुर्तियाँ बनाता था जिन्हे देख कर के लगता था की बस ये बोल उठेंगी।मतलब बोलने वाली मुर्तियाँ । इतनी जीवंत कलाकारी करता था। उसके टैलेंट का तो क्या कहना दूर दूर से लोग आते थे मुर्तियाँ खरीद कर ले जाते थे। बड़े बड़े राजा उसको अपने दरबार में बुलाकर सम्मानित करते थे। परन्तु उसको अपनी कला पर बहुत घमंड था वो सोचता था की उसे मूर्ति की हर चीज के बारे में पता है । न तो कोई उसके जैसी मूर्तिये बना सकता है और न कोई बना पायेगा। क्यूंकि उसको लगता था की उसकी मूर्ति में कमियाँ निकाल पाना असम्भव था।
पर कहते है न हर चीज का एक अंत आता है , अंत आ गया था उस मूर्तिकार के उम्र के सीमा का भी। अब उसे जाना था ये दुनिया छोड़कर पर ये बात कोण जानता था ? सिर्फ यमराज। तो यमराज अपने यमदूतो के साथ उस मूर्तिकार को लेने के लिए जाने लगे । उस मूर्तिकार को भी भनक लग गई थी की उसका अंतिम समय आ गया है। और यमदूत उसे लेकर जाने के लिए तैयार है। मूर्तिकार को तभी एक आईडिया आया की जब यमराज मुझे पहचान ही नहीं पाएंगे तो कैसे ले जाएंगे। मूर्तिकार ने अपने जैसी दिखने वाली दस मुर्तिया बना दी हूबहू मूर्तिकार के जैसे अगर कोई देख ले तो पहचान न पाए की कौन असली मूर्ति है और कौन वो असली मूर्तिकार है। याने की कला और कलाकार दोनों में अंतर ढूँढ़पाना बड़ा मुश्किल था।
मूर्तिकार ने दस अपने जैसी दिखने वाली मुर्तिया बना दी और उनमे छिपकर के बैठ गया अब वहां ग्यारह मुर्तियाँ दिख रही थी। यमराज उसके यमदूत के साथ धरती पर आये। मूर्तिकार को लेने के लिए उसके घर पहुंचे उसके घर में देखा कोई नहीं था। वो पीछे गए तो देखा की आँगन में ग्यारह मुर्तियाँ रखी है और ग्यारह की ग्यारह एक जैसी है पता ही नहीं चल पा रहा था कौन असली है कौन नकली है। और मूर्तियों के बाजू में लिखा था की यमराज इन ग्यारह मूर्तियों में एक असली मूर्तिकार भी है अगर आप अपने आप को यमराज मानते है तो बिना कोई शक्ति के असली मूर्तिकार को पहचान कर बताइये। पर हाँ, आप मूर्ति को स्पर्श नहीं कर सकते।
यमराज और यमदुतो ने इसे पढ़ा और सोचा की ये तो यमराज के सम्मान पर बात आ गई। यमराज ये तो समझ गए थे की मूर्तिकार ने अपने बचने के लिए एक तरीका निकाल लिया है। और अपने लिए दस मुर्तिया बनाई है और इनमे छुप कर के बैठ गया है अब ग्यारह में से वो मूर्तिकार कौन है उसे ढूढ़ पाना बड़ा मुश्किल था यमराज सोच रहे थे की हम हार मान कर के तो जा नहीं सकते। आएं है तो इस मूर्तिकार को लेकर ही जाएंगे। पर अब इसके साथ इसके घमंड को भी तोडना होगा।यमराज तरीका सोचने लगे तभी एक यमदूत ने कहा महाराज मेरे पास एक छोटा सा आईडिया है। बस एक बात बोलूंगा देखना अपने आप मूर्तिकार बहार आ जायेगा और उसका घमंड भी जाएगा।
उस यमदूत ने कहा देख रहे हो साथियों मूर्तिकार ने अपने बचने के लिए क्या आईडिया लगाया है दस मूर्तियां अपने जैसी बना दी और इनमे छुप कर के बैठ गया। हम तो पता ही नहीं लगा पा रहे है की कौन असली है और कौन नकली है। लेकिन मुझे लगता है की इन मूर्तियों में एक छोटी रह गई। जहा यमदूत ने ऐसा कहा मूर्तिकार बोल उठा की क्या कमी रह गई। तभी बाकी के यमदुतो ने उसे पकड़ लिया। और कहा की मूर्तियां कभी भी बोलती नहीं है। तुमने अंत समय में भी आपने घमंड को नहीं छोड़ा। और उसी घमंड ने तुम्हारा अंत कर दिया।
छोटी सी कहानी है लेकिन हम सबको सिखाती है की कभी घमंड मत करना क्यूंकि जो अहंकार होता है वो बड़े बड़ो को नस्ट कर देता है कोई कितना भी ताकतवर हो अपने अहं के आगे ख़त्म हो जाता है। मै तो यही कहूंगा की
" घमंड मत करना जिंदगी में तकदीर बदलती रहती है।
शीशा वहीँ रहता है तस्वीर बदलती रहती है। "
तो कैसी लगी कहानी हमें कमेंट में जरूर बताये।